(4)संबंधवाचक
सर्वनाम :-जिन सर्वनाम शब्दों का दूसरे सर्वनाम शब्दों से संबंध ज्ञात हो तथा जो
शब्द दो वाक्यों को जोड़ते है, उन्हें संबंधवाचक
सर्वनाम कहते है।
जैसे- जो,
जिसकी, सो, जिसने, जैसा, वैसा आदि।
उदाहरण- जैसा
करेगा वैसा भरेगा।
जो परिश्रम करते
हैं, वे सुखी रहते हैं।
वह 'जो' न करे, 'सो' थोड़ा
(5)प्रश्नवाचक
सर्वनाम :-जो सर्वनाम शब्द सवाल पूछने के लिए प्रयुक्त होते है, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते है।
सरल शब्दों में-
प्रश्र करने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है, उन्हें 'प्रश्रवाचक
सर्वनाम' कहते है।
जैसे- कौन,
क्या, किसने आदि।
उदाहरण- टोकरी
में क्या रखा है।
बाहर कौन खड़ा है।
तुम क्या खा रहे
हो ?
यहाँ पर यह ध्यान
रखना चाहिए कि 'कौन' का प्रयोग चेतन जीवों के लिए और 'क्या' का प्रयोग जड़ पदार्थो के लिए होता है।
(6) निजवाचक सर्वनाम
:-'निज' का अर्थ होता है- अपना और 'वाचक का अर्थ होता है- बोध (ज्ञान) कराने वाला
अर्थात 'निजवाचक' का अर्थ हुआ- अपनेपन का बोध कराना।
इस प्रकार,
जिन सर्वनाम
शब्दों का प्रयोग कर्ता के साथ अपनेपन का ज्ञान कराने के लिए किया जाए, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते है।
जैसे- अपने आप,
निजी, खुद आदि।
'आप' शब्द का प्रयोग पुरुषवाचक तथा निजवाचक
सर्वनाम-दोनों में होता है।
उदाहरण-
आप कल दफ्तर नहीं
गए थे। (मध्यम पुरुष- आदरसूचक)
आप मेरे पिता
श्री बसंत सिंह हैं। (अन्य पुरुष-आदरसूचक-परिचय देते समय)
ईश्वर भी उन्हीं
का साथ देता है, जो अपनी मदद आप
करता है। (निजवाचक सर्वनाम)
'निजवाचक सर्वनाम'
का रूप 'आप' है। लेकिन
पुरुषवाचक के अन्यपुरुषवाले 'आप' से इसका प्रयोग बिलकुल अलग है। यह कर्ता का
बोधक है, पर स्वयं कर्ता का काम
नहीं करता। पुरुषवाचक 'आप' बहुवचन में आदर के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे-
आप मेरे सिर-आखों पर है; आप क्या राय देते
है ? किन्तु, निजवाचक 'आप' एक ही तरह दोनों
वचनों में आता है और तीनों पुरुषों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
निजवाचक सर्वनाम 'आप' का प्रयोग निम्नलिखित अर्थो में होता है-
(क) निजवाचक 'आप' का प्रयोग किसी संज्ञा या सर्वनाम के अवधारण (निश्र्चय) के लिए होता है। जैसे-
मैं 'आप' वहीं से आया हूँ; मैं 'आप' वही कार्य कर रहा हूँ।
(ख) निजवाचक 'आप' का प्रयोग दूसरे व्यक्ति के निराकरण के लिए भी होता है। जैसे- उन्होंने मुझे
रहने को कहा और 'आप' चलते बने; वह औरों को नहीं, 'अपने' को सुधार रहा है।
(ग) सर्वसाधारण के
अर्थ में भी 'आप' का प्रयोग होता है। जैसे- 'आप' भला तो जग भला; 'अपने' से बड़ों का आदर करना उचित है।
(घ) अवधारण के
अर्थ में कभी-कभी 'आप' के साथ 'ही' जोड़ा जाता है।
जैसे- मैं 'आप ही' चला आता था; यह काम 'आप ही'; मैं यह काम 'आप ही' कर लूँगा।
संयुक्त सर्वनाम
रूस के हिन्दी
वैयाकरण डॉ० दीमशित्स ने एक और प्रकार के सर्वनाम का उल्लेख किया है और उसे 'संयुक्त सर्वनाम' कहा है। उन्हीं के शब्दों में, 'संयुक्त सर्वनाम' पृथक श्रेणी के सर्वनाम हैं। सर्वनाम के सब भेदों से इनकी भित्रता इसलिए है,
क्योंकि उनमें एक शब्द नहीं, बल्कि एक से अधिक शब्द होते हैं। संयुक्त
सर्वनाम स्वतन्त्र रूप से या संज्ञा-शब्दों के साथ भी प्रयुक्त होता है।
इसका उदाहरण कुछ
इस प्रकार है- जो कोई, सब कोई, हर कोई, और कोई, कोई और, जो कुछ, सब कुछ, और कुछ, कुछ और, कोई एक, एक कोई, कोई भी, कुछ एक, कुछ भी, कोई-न-कोई, कुछ-न-कुछ, कुछ-कुछ, कोई-कोई इत्यादि।
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